Saturday, June 9, 2012

Sai Vacah, Sai Kirpa
*************************** ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं निर्बल और गरीब के, मालिक साईं नाथ | सबका मालिक एक है, भज ले दीनानाथ || श्री साईं कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे *************************** अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक राजाधिराज योगिराज परब्रह्म श्री सचिदानंद समस्त सद्गुरु श्री साईं नाथ महाराज की जय ! *************************** साईं वचन - मेरे भक्तों में दया कूट-कूटकर भरी रहती है, दूसरों पर दया करने का अर्थ है मुझे प्रेम करना चाहिए, मेरी भक्ति करना| *************************** ---शिवजी की आरती--- शीश गंग अर्द्धागड़ पार्वती,सदा विराजत कैलाशी | नंदी भृंगी नृत्य करत हैं,धरत ध्यान सुर सुख रासी || शीतल मंद सुगंध पवन बहे,वहाँ बैठे है शिव अविनासी | करत गान गंधर्व सप्त स्वर,राग रागिनी सब गासी || यक्षरक्ष भैरव जहं डोलत,बोलत है बनके वासी | कोयल शब्द सुनावत सुन्दर,भंवर करत हैं गुंजासी || कल्पद्रुम अरु पारिजात,तरु लाग रहे हैं लक्षासी | कामधेनु कोटिक जहं डोलत,करत फिरत है भिक्षासी || सूर्य कांत समपर्वत शोभित,चंद्रकांत अवनी वासी | छहों ऋतू नित फलत रहत हैं,पुष्प चढ़त हैं वर्षासी || देव मुनिजन की भीड़ पड़त है,निगम रहत जो नित गासी | ब्रह्मा विष्णु जाको ध्यान धरत हैं,कछु शिव हमको फरमासी || ऋद्धि-सिद्धि के दाता शंकर,सदा अनंदित सुखरासी | जिनको सुमरिन सेवा करते,टूट जाय यम की फांसी || त्रिशूलधर को ध्यान निरन्तर,मन लगाय कर जो गासी | दूर करे विपता शिव तन की,जन्म-जन्म शिवपत पासी || कैलाशी काशी के वासी,अविनासी मेरी सुध लीज्यो | सेवक जान सदा चरनन को,आपन जान दरश दीज्यो || तुम तो प्रभुजी सदा सयाने,अवगुण मेरो सब ढकियो | सब अपराध क्षमाकर शंकर,किंकर की विनती सुनियो || ******************************* श्री सच्चिदानंद साई महाराज को साष्टांग नमस्कार करके उनके चरण पकड़ कर हम सब भक्तों के कल्याणार्थ उनसे प्रार्थना करते है कि हे साई । हमारे मन की चंचलता और वासनाओं को दूर करो । हे प्रभु । तुम्हारे श्रीचरणों के अतिरिक्त हममें किसी अन्य वस्तु की लालसा न रहे । श्री साईं जी के वचनों को पड़ने के लिए आएं.....

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